सोमवार, 19 सितंबर 2022

आना दाई वो आ ना

आना दाई वो तोर बेटा बलावत हे

तोर अचरा के छइंहा खातिर तोला गोहरावत हे

आना दाई वो आ ना

आना दाई वो आ ना


भाई-भाई खून के प्यासा

दिखत हमरो नासा हे

आस उड़ागे ये दुनिया के

मोला अब तोरे आसा हे

आना दाई वो आ ना

आना दाई वो आ ना


झन कर अबेर वो दाई

बड़े बिपत के बेरा हे

मोह माया के जग बंधना

संउहत काल के डेरा हे

आना दाई वो आ ना

आना दाई वो आ ना


ताल लय सूर बोली भाखा

तोर किरपा ले पाये हंव

नव दिन नव राति मईया

तोरे सेवा ल गाये हंव

आना दाई वो आ ना

आना दाई वो आ ना

-एमन दास ‘अंजोर’

शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

चिखला माटी के मजा

बने हन के बासी खा ले रे नंगरिहा 

चिखला माटी के मजा तभे आही 

बने तान के तैहां गा ले रे ददरिया 

चिखला माटी के मजा तभे आही 


गारे पसीना मिहनत के, 

तोर अबिरथा नै जावय 

नांगर धरे बिन जांगर थकथे, 

फल करम बिन नै पावय 

उतर डोली म जीनगी जंग हे,

अऊ जोत दे तय कतको हरिया 

चिखला माटी के मजा तभे आही 


तन माटी हे मन माटी,

माटी बिना मन नै लागय 

माटी म माटी मिलथे तब 

जीनगी जनम हा नीक लागय 

पुरवज के परताप हे तोर कर 

ढिल दे पिरित छलकै नरवा 

चिखला माटी के मजा तभे आही 


बने हन के,,,

एमन दास 'अंजोर'


सोमवार, 12 जुलाई 2021

हो रे सावन,

हो रे सावन,

छतिया ल मारे बजुर बान।

उमर घुमर बरसे कारिया रे बादर

हिरदे ल करय हलाकान ।। रे सावन।।

पाना पतेवना के भाग हरियाये

घुर घुर माटी के छूटत हे परान।। रे सावन।।

कांदी उगे हस रे कट जाबे एक दिन

हंसिया के धार जीनगी जान।। हो रे सावन।।


एमन दास मानिकपुरी

सोमवार, 28 जून 2021

बेरा

कइसे होथे रंग जीनगी के 
बेरा सब ल देखा देथे 
बेरा के परताप गजब हे 
सबके पय ल बता देथे

बेरा तो सबके आथे फेर 
बेरा सबके रहय नहीं 
बखत परे बेरा नइ मिलय 
बखत म बेरा टरय नहीं 

आज मोर काली तोर बेरा हे
बेरा ह सरकत जाथे जी 
बारी बारी ओसरी पारी 
बेरा ह सब ल खाथे जी 

बेरा ल कऊन समझ पाए हे
बेरा के बिकट तमाशा हे 
बेरा ह सब ल निराश करय 
बेरा ले सब के आशा हे

-एमन दास मानिकपुरी 

बुधवार, 11 नवंबर 2020

अनपुरना दाई

खार मा परगट ए अनपुरना दाई 
बैला गाड़ी के डोला सजे हे ओ 
बियारा मा ऊ तर के घर मा आबे 
देवारी के बाजा बजे हे ओ 

करपा करपा तोर चरण पखारव 
रास रास सजावव ओ दाई 
ओरछ ओरछ दुवारी म पानी
कोठी म तोला बैठारव ओ दाई 
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हांसै हंसिया कै चक लुवा गे 
नाचै नरई बने सीला बिना गे 
बंधा बंधा के  बोझा जोरा गे 
काबा काबा खरही गंजा गे 
रात पहाती दउरी हा फंदा गे 
धान मिंजागे पइरा सकला गे 
सुपा सुपा उड़ियागे ओसा गे 
काठा काठा लंघियात नपा गे 

-एमन दास मानिकपुरी
मो 7970006698

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

हो रे फागुन - कवि एमन दास मानिकपुरी

तोर मया मोहना मोर नोहर भईगे
एसो के फागुन ह या जहर भईगे 

सांस के दिया जरे आस के बाती म 
अईसने जरत बरत बैरी बरस भईगे 

का घर बन अंगना का पंछी दूवारी 
बिजराथे बैमान सुरता बजर भईगे 

बिकट लाहो लेथे परसा के फुल 
गजब गरू गऊकी ये नजर भईगे 

खार डोगरी नरवा तरिया ताना देथे 
करू कछार गांव बस्ती डहर भईगे 

फागुन के लाली रंग गुलाली नै हे
लोखन पिरित के पीरा पहर भईगे 
anjorcg.blogspot.com
चित्र: साभार इंटरनेट 







सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

है कौन क्षितिज के पार

रोज सुबह कदम कदम
चल पड़ती है जिंदगी
जाने कैसी तलाश है
है जाने कैसी प्यास

कुछ पाने का हर्ष नया
कुछ खोने का है विषाद
कहीं कहीं पर हारा है
है कहीं कहीं आबाद

सपना ही तो लगता है
सब क्षण भर का एहसास
जो कल उसके पास था
वो आज है इसके पास

कई चेहरे हंसते हैं यहाँ
कई चेहरे हैं बहुत उदास
कई अभी मालिक बना
कई सदियों से हैं दास

रोज नया निर्माण यहां
है रोज नया विनाश
मन के कोने कोने में
उठती मिटती है आस

हरदम नव संघर्ष यहां
है नया नया विश्वास
चला चली की बेला में
कौन है किसके पास

कौन हाथ धरा बंधी है
है टंगी गगन कौन तार
ये कौन उगाता सूरज है
है कौन क्षितिज के पार

-एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
चित्र साभार - इंटरनेट